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    बुरांश - उत्तराखंड का राज्य वृक्ष

    burshtree

    बुरांश

      वैज्ञानिक नाम:   रोडोडेंड्रॉन अरबोरियम
      खिलने का समय:   मकर संक्रांति (अप्रैल)
      औषधीय प्रयोग:   ह्रदय रोग, उच्च रक्तचाप
      अन्य नाम:   बुरुंशी, आर्डवाल, बुरांशौं
      संरक्षण:  -
      कुल:  एरिकेसिई

    आम तौर पर 12 महीनों हिमालयी राज्य प्रकृति की अनुपम भेंट से लबरेज रहते है। लेकिन बसंत ऋतु आने पर प्रकृति पहाड़ो की खूबसूरती पर जैसे चार चाँद लगा देती है। माघ, फागुन, चैत्र, बैशाख माह जैसे मौसमी फल, फूलों आदि के लिए वरदान देने वाले होते है। इन्ही में एक ऐसा मौसमी फूल है "बुरांश" या "बुरुंश " जिससे मार्च अप्रैल में पहाड़ो की धरती लाल श्रृंगार करती है।


    जटिस एरीकेसिया प्रजाति परिवार में सम्मिलत ‘रोडोडेंड्रॉन’ (Rhododendron) के 850 प्रकार पाए जाते हैं। ‘रोडोडेंड्रॉन’ ग्रीक भाषा का शब्द है, जिसमें दो शब्दों का युग्म है, एक है- ‘रोडो’ (Rhodo) जिस का अर्थ है गुलाब (Rose) और ‘डेण्ड्रोन’ (dendron) जिसका अर्थ है- वृक्ष (Tree)।


    यह माना जाता है कि ‘र्होडोडेण्ड्रोन’ का इतिहास 401 बी.सी. पुराना है। जब जीनोफन फौज बेबीलोन से भाग खड़ी हुई थी, जो तुर्की के ब्लैक-सी-कोस्ट पर बसे ट्रेबीजोण्ड के द्वीप की अमरीकी पहाड़ियों पर अवस्थित था। क्षुधा पीड़ित सैनिकों ने पीले पुष्प से भरे ‘पाउटिक एजालिया’ के मधु से अपनी क्षुधा शांत की थी। जिससें र्होडोडेण्ड्रोन ल्युटियम भी शमिल था। इनसे बेहोशी और उलटी को नियंत्रित किया गया था।


    उत्तराखण्ड के हिमालयी क्षेत्रों में आर. आर्पोरियम प्रजाति पाई जाती है। यह प्रजाति कुमाऊँ और गढ़वाल के हिमालयी क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में पाई जाती है। जिसके फूलों का उपयोग शर्बत, स्क्वाश, जेम और जेली बनाने में किया जाता है। टेम्परेट हिमालय की 1100 से 2500 फीट की ऊंचाई पर उग जाता है। 12मी. 3मी. के क्षेत्र में यह झाड़ीनुमा पौधा विकसित होता है। मई-जून के महीनों में इसमें गहरे लाल या पाण्डु-गुलाबी रंग के पुष्प लद जाते हैं जो हल्की बालुई और मध्यम चिकनी मिट्टी में विकसित होते हैं। इन्हें पर्याप्त नमी मुक्त अम्लीय मृदा की आवश्यकता होती है। बुरांश धूपछाँह या बिना छाँह वाले क्षेत्रों में उग जाते हैं। बुरांश के वृक्षो की ऊंचाई लगभग 25 फ़ीट तक होती है। बैशाख माह तक पहाड़ो पर बुरांश देखा जा सकता है। हिमाचल और नागालैंड का यह राजकीय पुष्प है। बुरांश, भारत के साथ साथ चीन, नेपाल, पाकिस्तान, थाईलैंड, श्रीलंका में भी पाया जाता है।


    बुरांश की खूबसरती से कवि और लेखक भी दूर नहीं रह सके। बहुत से कवियों ने अपनी रचनाओं में बुरांश की खूबसरती और इससे सम्बंधित रचनाएँ लिखी है। यहाँ की लोककथाओं और लोकगीतों में भी बुरांश का वर्णन मिलता है।


    बुरांश का फूल


    बुरांश का उपयोग


    बुरांश का बहुमुखीय प्रयोग होता है और अनेक उत्पाद बनते हैं।


    खाद्य उपयोग


    इसके पुष्पों का स्वाद मीठा-खट्टा होता है। बुरांश के फूल, जेली और स्क्वास बनाने में उपयोग में लाए जाते हैं। दिन में एक बार लेने से भूख पैदा होती है। इसकी पत्तियाँ, पकी सब्जियों जैसी काम में आती है। इनसे जूस (शर्बत) और जेम भी बनते हैं।


    औषधि उपयोग


    बुरांश की ताजी पत्तियां पुल्टिश बनाने के काम आती हैं। जिनका उपयोग सिर-दर्द दूर करने में होता है। ये स्वांस को आराम देने वाला, मांसपेशियों के दर्द और सिफलिस में काम आती है। जुकाम, हेमीफ्रेनिया, कुलंग-दर्द और लगातार बुखार में भी काम आते हैं। ये एरोमेटिक और चेतना देने वाली हैं।


    अन्य उपयोग


    इसकी लकड़ी का प्रयोग टर्नरी में होता है और चारकोल तथा ईधन बनाने में भी। बुरांश के फूल और पत्तियों के उपयोग के अलावा बुरांश की कुछ प्रजातियां जैसे- आर. ओस्सीडेन्टेल और आर. एजेलिया नशीली होती हैं। नशीले पदार्थों में ग्रॉयनोटोक्सिन और आर्बुटिन जैसी चीजें होती हैं। जिनसे मिचली, लार-स्राव, उल्टी, कमजोरी और चक्कर की स्थिति, सांस लेने में परेशानी, संतुलन बिगड़ना, वजन घटना और नशा जैसा छा जाना हो जाता है। यदि अधिक मात्रा में लिया जाए तो ये सभी लक्षण पैदा हो जाते हैं।


    बुरांश की उपयोगिता केवल चिकित्सा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्रों में ही नहीं है, बल्कि लघु एवं कुटीर उद्योगों के सतत् विकास में भी सहायक है। ये उद्योग बुरांस से जेम, जेली, जूस और स्क्वाशों का निर्माण करते हैं। जिससे हिमालयी क्षेत्र में रोजगार के अवसर पैदा होते हैं। जिनसे प्रकृति एवं स्थानीय लोगों का जीवन-स्तर सुधरता है। इससे राष्ट्रीय आय होती है। आर्थिक उन्नति होती है।
    दस हजार फीट की ऊँचाई पर छह माह बर्फ में दबे रहने के बाद भी खिल उठता है सफेद बुरांश। यह शांति क संदेश देता है। यह दिल और पेट के लिए रामबाण माना जाता है। धार्मिक भावनाओं के अनुसार बुरांश भगवान शिव के श्रृंगार में उपयोग में लाया जाता था।



    लेखक -पल्लवी श्रीवास्तव - नैनीताल

    संदर्भ - पुरवासी - 2011, श्री लक्ष्मी भंडार (हुक्का क्लब), अल्मोड़ा, अंक : 32


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