गर्तांग गली | |
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निर्माण काल | 17वीं शताब्दी |
स्थिति | नेलांग घाटी, उत्तरकाशी |
समुन्द्रतल से ऊँचाई | 11000 फिट |
जिला मुख्यालय से दूरी | 110 कि.मी. |
निकटतम हवाई अड्डा | जॉली ग्रांट एअरपोर्ट, देहरादून |
निकटतम रेलवे स्टेशन | ऋषिकेश, देहरादून |
भारत-तिब्बत व्यापार का गवाह रहा गर्तांग गली मार्ग पहाड़ों के दुर्गम चट्टानों को काटकर बनाया गया लकड़ी का एक मार्ग था। यह उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी जिले के नेलांग घाटी में स्थित है। गर्तांग गली मार्ग बनने से पहले नेलांग जाने का रास्ता बहुत दुर्गम था और अक्सर व्यापारी व उनके सामान ढ़ोने वाले जानवर मारे जाते थे। कहा जाता है कि 17वीं शताब्दी में भारत और तिब्बत के व्यापारियों के आवागमन के लिए नेलांग-जाडुंग के जाड़ समुदाय के एक सेठ ने व्यापारियों की मांग पर पेशावर के पठानों की मदद से इस मार्ग को बनवाया था। पेशावर के आसपास खैबर के पहाड़ भी बड़े दुर्गम हैं और वहाँ के पठानों को ऐसे पहाड़ों में रास्ता बनाने का अच्छा अनुभव था।
1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद सरकार ने देश की सुरक्षा कारणों को देखते हुए इस मार्ग को बंद कर दिया था। हालांकि बीच में सेना ने भी इस मार्ग का प्रयोग किया। लेकिन जब वर्ष 1975 में भैरव घाटी से नेलांग तक सड़क बनी तो सेना ने भी इस रास्ते का इस्तेमाल करना बंद कर दिया। देख-रेख के अभाव में इसकी सीढियां और सुरक्षा बाढ़ के लिए किनारे लगाई गई लकड़ी वक्त के साथ जर्जर होती चली गई।
1962 से पूर्व यह व्यापार के लिए मुख्य व सुगम मार्ग हुआ करता था। व्यापारी अपने घोड़ा, खच्चर, याक आदि पर सामान लादकर इसी मार्ग से यात्रा करते थे।
भैरव घाटी के पास लंका पुल के बाई ओर जाड़ गंगा घाटी में यह मार्ग स्थित है। जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से इसकी दूरी करीब 110 कि.मी. है। यह लकड़ी का मार्ग लगभग 136 मीटर लम्बा और 1.8 मीटर चौड़ा है और समुद्रतल से इसकी ऊँचाई 11 हजार फीट है।
पर्यटन की संभावनाओं को देखते हुए गर्तांग गली का पुनर्निर्माण कार्य मार्च 2021 शुरू किया गया और कार्य पूरा हो जाने के बाद अगस्त 2021 में इसे पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है। यहां से नेलांग घाटी का सुरम्य दृश्य दिखता है। इस क्षेत्र को वनस्पति व वन्यजीव की दृष्टि से काफी अच्छा माना जाता है। यहाँ स्नोलेपर्ड व हिमालयन ब्लू शीप जैसे दुर्लभ वन्यजीव भी दिखाई देते है।
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