KnowledgeBase


    कती फौदार

    कती फौदार (अनुमानित जीवनावधिः उन्नीसवीं सदी का उत्तरार्द्ध): दारमा, व्यास और चौदास क्षेत्र, जिला पिथौरागढ़ का तत्कालीन शासक। कत्ती फौंदार की राजधानी ग्वू गाँव में थी। उसके कोट (किला) व बन्दीगृह के खण्डहर आज भी गाँव में हैं। कत्ती फौंदार को नेपाल सरकार से प्रशासनिक अधिकार एव लाल मुहर द्वारा व्यवस्थापिका के अधिकार प्राप्त थे। लाल मुहर का प्रमाण-पत्र बाद में पण्डित गोबरया के हाथ लग गया था। अब यह प्रमाण पत्र गुंजी ग्रामवासी श्री हरिकृष्ण के पास है। यद्यपि अब इसका उपयोग नहीं है, फिर भी यह एक ऐतिहासिक धरोहर है। कत्ती फौंदार को ऐय्याश शासक बताया जाता है। अपने दरबार में नृत्य करने के लिए वह ढोली नामक जनजाति के कुछ लोगों को नेपाल से ले आया था। आज दारमा क्षेत्र के अधिकांश गांवों में इस जनजाति के लोग देखे जाते हैं जो शौकाओं के आश्रित हैं। कत्ती फौदार का अस्कोट के पाल शासकों से सदैव ही मनमुटाव रहता था। उस समय कत्ती फौंदार के राज्य की सीमा उत्तर में लीपू लेख व लिम्पिया दर्रा और पूर्वी सीमा काली नदी बनाती थी। दक्षिण-पश्चिम सीमा पर हमेशा विवाद रहता था। अस्कोट के पाल एलागाड़ को तथा कत्ती गोरी नदी को, दोनों के बीच की सीमा बताता था।


    कत्ती फौदार के बारे में कहा जाता है कि उसने दारमा की समस्त जनता को अपने महल निर्माण के कार्य में लगाया, किन्तु किसी को भी मजदूरी नहीं दी। पीड़ित जनता ने इसके हुक्म को मानना छोड़ दिया। तब वह काठमाण्डू पहुंचा। नौ वर्ष की लम्बी अवधि तक इन्तजार के बाद वह नेपाल राजा को मिलने में सफल हो सका। वहां उसने अपनी व्यथा सुनाई। तभी उसे लाल मुहर का प्रमाण पत्र मिला। फौदार की मृत्यु के बाद उसका बेटा मंडवा स्याते ने शासन सम्भाला। उसने ब्रिटिश सरकार की सहायता से अपने और अस्कोट के पाल राजाओं के मध्य सीमा का निर्धारण करवाया। एक षड़यंत्र के तहत एक दिन अस्कोट के पाल राजा ने उसे गर्जिया पुल से गोरी नदी में बहा दिया।


    हमसे वाट्सएप के माध्यम से जुड़े, लिंक पे क्लिक करें: वाट्सएप उत्तराखंड मेरी जन्मभूमि

    हमारे YouTube Channel को Subscribe करें: Youtube Channel उत्तराखंड मेरी जन्मभूमि

    Leave A Comment ?