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    लक्ष्मी चंद - चंद वंश

    रूद्रचंद की मृत्यु के पश्चात् 1597 ई0 में उसका छोटा पुत्र लक्ष्मी चंद गद्दी पर बैठा। इस राजा के और भी नाम मिले हैं। सीरा से प्राप्त चंदों की वंशावली में उसे लछिमीचंद, मूनाकोट ताम्रपत्र में लछिमन चंद तथा 'मानोदय-काव्य' में लक्ष्मण कहा गया है।


    लक्ष्मीचंद का बड़ा भाई शक्ति गुसाईं, जो जन्मांध था, वास्तव में, प्रशासन की व्यवस्था वहीं करता था। उसने नये सिरे से दारमा घाटी की व्यवस्था की, जिसमें शौकों के अधिकार व कत्र्तव्य निर्धारित किये गये। उनसे बन्दोबस्त के बदले अनेक तिब्बती वस्तुओं को राजदरबार में पहुंचाने का करार किया। सिरती व राजकर की शर्तें भी नियत कीं तथा सीमाओं पर सीमा सूचक पत्थर लगवाये। राजधानी में बंदोबस्ती-कार्यालय की स्थापना की। भूमि पर अनेक प्रकार के कर नियत किये गये, जिनके नाम ज्यूला, सिरती, बैकर, रछया, कूत, भात, नेगि, साउ, रतगलि, कनक, बखरिया, सीकदार-नेगी आदि मिलते हैं। भिन्न-भिन्न चीजों को रखने की जगहों का भी नामकरण किया गया। न्योवाली न्याय वाली व बिष्टाली नामक कचहरियां बनाईं। इनमें न्योवाली नामक कचहरी समस्त जनता के लिए व बिष्टाली केवल सैनिक मामलों के न्याय के लिए होती थीं। राज्य-कर्मचारियों की तीन श्रेंणिया बनाई गई। ये थीं- 1. सरदार, जो परगने का शासक होता था, 2. फौजदार’ यह सेना का अधिकारी था, 3. नेगी-ये राज्य के छोटे कर्मचारी होते थे, जिन्हें अनाज के रूप में दस्तूर (नेग) मिलता था। नागरिक-प्रशासन भी इन्हीं के हाथों में होता था।


    लक्ष्मी चंद एक बड़ा निर्माता भी था। उसने बड़े-बड़े बाग-बगीचे लगवाये। नरसिंह बाड़ी, पांडे खोला, कबीना तथा लक्ष्मीश्वर आदि बगीचे उसी के समय में स्थापित किए गए। उसने यत्र-तत्र मंदिर भी बनवाये तथा पुराने जीर्ण-शीर्ण मंदिरों का जीर्णोद्धार भी किया। बागेश्वर के बाघनाथ-मंदिर का जीणोद्धार उसने 1602 ई. में किया था। इसके शिवलिंग में ताँबे की नई शक्ति लगवाई थी। चंद राजा मंदिर व नौलों (बावड़ियों) को बनाने के बड़े शौकीन थे। इन कार्यों के लिए उन्होंने देश के मैदानी भागों से कारीगरों (शिल्पियों) की बड़ी-बड़ी श्रेणियों (गिलड्स) को लाकर यहां विभिन्न स्थानों पर बनाया था तथा उन्हें जमीनें ‘रौत’ (बहादुरी पुरस्कार)- में दी थीं। पृथ्वीचंद रजबार के अठिगांव (मल्ली गंगोली) ताम्रपत्र में शाके 1532 (1610 ई0) में किसी तमोटा (टम्टा)को एक अधाली (आठ नाली या पंद्रह किलो अनाज बोने की क्षमता वाली जमीन) भूमि देने का उल्लेख है।


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