KnowledgeBase


    सोमनाथ (मासी) का मेला

    Somnath-masi-mela

    इस लोकोत्सव का आयोजन कुमाऊं मंडल के अल्मोड़ा जनपद की तहसील रानीखेत के कस्बे चौखटिया से 12 कि. मी. की दूरी पर स्थित मासी नामक गांव में रामगंगा के उस पार स्थित सोमेश्वर महादेव के मंदिर के सामने नदी तट पर होता है। यह इस क्षेत्र का सर्वाधिक प्रसिद्ध व्यावसायिक एवं धार्मिक लोकोत्सव हुआ करता था। कुछ दशक पूर्व तक यहां भी काशीपुर के चैती मेले के समान 8-10 दिन का मेला हुआ करता था तथा पशु, विशेषकर बैलों का, व्यापर होता था, किन्तु अब व्यापर की आधुनिक सुविधाओं की उपलब्धि, लोगों के अन्य व्यवसायों में व्यस्तता एवं लोकोत्सवों के प्रति उत्साह की कमी के फलस्वरूप इसका वह रूप नहीं रह गया जो कि पहले हुआ करता था। इतना ही नहीं अब तो यह परम्परा के निर्वाह के लिए सिमट कर केवल 2-3 दिन का रह गया है।


    इसका प्रारम्भ वैसाख के अन्तिम रविवार को होता है तथा पहली सत्र के मेले को 'सल्टिया मेला' कहा जाता है। इसका मुख्य आकर्षण हाता है वैसाख के अन्तिम सोमवार को सोमनाथ के मंदिर के सामने रामगंगा के इस ओर के तट पर नदी में पत्थर फेंक कर पानी उछालने की प्रतियोगिता। यह प्रतियोगिता पालीपछाऊं के दो धड़ों-मासीवाल (ब्रा.) तथा कनूड़िया (क्ष.) के बीच होती है। एतदर्थ दोनों धड़ों के लोग अपने-अपने निशानों (ध्वजों) व ढोल-नगाड़ां के साथ आकर रामगंगा के किनारे एक नियत स्थान पर खड़े हो जाते हैं तथा दोनों धड़ों के प्रधानों के द्वारा नियत समय पर प्रतियोगिता प्रारम्भ करने के लिए उनके संकेतों की प्रतीक्षा करते हैं। ज्योंही उनकी ओर से झंडी या सीटी का संकेत मिलता है त्योंही दोनों धड़ों के लोग हाथों में बड़े-बड़े गंगलोड़ (गोल-गोल नदी के पत्थर) लेकर नदी में उन्हें फेंक कर उसका जल उछालने के लिए नियत बिन्दु की ओर दौड़ पड़ते हैं। इसमें प्रत्येक दल का प्रयास होता है कि वह दूसरे से पहले वहाँ पहुंच कर जल को उछाले। इसमें जो धड़ा पहले ऐसा करने में सफल होता है उसी की जीत मानी जाती है। उल्लेख्य है कि इस प्रकार उछाले गये जल को पवित्र माना जाता है और वहां पर उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति इसे अपने ऊपर लेने का यत्न करता है। इसके अतिरिक्त, जैसा कि ऊपर कहा गया है कि यह अपने व्यावसायिक क्रिया-कलापों के लिए अधिक प्रसिद्ध था। अतः यहां पर क्रय-विक्रय की काफी चहल-पहल होती थी। चैती के मेले के समान पशुओं का, विशेषरूप से बैलों व बछडों का, क्रय-विक्रय होता था। साथ ही यहां के डांग के जूते भी काफी लोकप्रिय थे और बड़ी मात्रा में खरीदे जाते थे।


    हमसे वाट्सएप के माध्यम से जुड़े, लिंक पे क्लिक करें: वाट्सएप उत्तराखंड मेरी जन्मभूमि

    हमारे YouTube Channel को Subscribe करें: Youtube Channel उत्तराखंड मेरी जन्मभूमि

    Leave A Comment ?