एहे........
नस्यूड़ी को साल
हयूं पड़ो हिमाल
ओखड़ी को गाल
भैंसि पड़ो खाल
श्रतुवा चर्माल
कुमांय न्हैग्या माल
मल जानी बखत
भितर ठांसि ग्या
नलवू पराल।
जब कुमांय वाापिस आयान त
कुमायांन् ले खायो
आपनु कपाल
आफूं कि धैं घाग्रो ल्याया,
स्यैनी की सुर्वाल।
चैगर्खा बुड़ जसी,
हंसने की काल।
मुखड़ि में मुज पड़ खड्यूनी
पैंला जतकाल।
म्यरो हियो भरी ऊंछौ
ज्सो नैनीताल।
भैंसी ले भाबर जानो,
बुड़ि ले माल।
त्यारा मुख चान चाना
आंखी हवैगे लाल।
हिरदी में बुड़ै गैछै,
मौनी कसो साल।
ओ अल्कि अल्कि धूरी कफुवा बासलो।
ओ जन झुरौ न्यौली उदास लागलो।।
हिंदी अनुवाद
एहे.....
हल के फलक का अग्रभाग
बर्फ पड़ी हिमालय में
अखरोट के दाने का बाहर का बक्खल
भैंस पड़ी तालाब में
रतुवा नाम का चर्मा में रहने वाला व्यक्ति
कुमयै चले गए मैदान की ओर
मैदान की ओर जाते समय भीतर ठूंस गए
गेहूं और धान का पुआल।
जब कुमयै वापस आए तो
कुमयों ने खाया
अपना कपाल।
अपने लिये लहंगा लाए,
पत्नी के लिये पैंट।
चैगर्खा (स्थान) के बूढ़े की जैसी
हंसने में तुम्हारी तुलना नहीं।
मुख पर झुर्रियां झलक आई गोरी,
पहले ही प्रसवकाल में।
मेरा हृदय भर आता है
नैनीताल के ताल की तरह।
भैंस ने भाबर की ओर जाना
बूढ़ी भैंस ने तराई।
तुम्हारे मुंह की ओर देखते देखते
आंखे लाल हो गई।
प्रिये, हृदय में तुम चुभो गई हो,
मधुमक्खी के जैसा डंक।
ओ, ऊंचे ऊंचे पर्वत शिखरों पर कफुवा पक्षी बोलेगा।
ओ, मत कूके न्यौली पक्षिणी, उदास लगेगा।